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dushyant kumar poetry in hindi नमस्कार दोस्तों- मैं आपका दोस्त अजय पाण्डेय आप सभी का technofriendajay.in पर स्वागत करता हूं, दोस्तों आज का यह आर्टिकल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और गजलकार दुष्यंत कुमार की कुछ चुनिंदा कविताओं और गजलों पर आधारित है।
दुष्यंत कुमार का पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के गांव राजपुर-नवादा जिला बिजनौर में हुआ था, दुष्यंत कुमार जी बहुत ही सरल, मनमौजी, और बेख़ौफ़ स्वभाव के थे
इन्होंने हिंदी कविता और गजल के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्धि हासिल की तो आइये पढ़ते हैं इस महान कवि की कुछ लोकप्रिय कविताएं और गजलें। dushyant kumar poems in hindi
दुष्यंत कुमार का पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के गांव राजपुर-नवादा जिला बिजनौर में हुआ था, दुष्यंत कुमार जी बहुत ही सरल, मनमौजी, और बेख़ौफ़ स्वभाव के थे
इन्होंने हिंदी कविता और गजल के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्धि हासिल की तो आइये पढ़ते हैं इस महान कवि की कुछ लोकप्रिय कविताएं और गजलें। dushyant kumar poems in hindi
dushyant kumar poetry
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये
अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
तब स्वागत हित हिलता रहता
अंतरवीणा का तार प्रिये
इच्छायें मुझको लूट चुकी
आशायें मुझसे छूट चुकी
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ
मेरे हाथों से टूट चुकी
खो बैठा अपने हाथों ही मैं
अपना कोष अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये
ये ज़बाँ हम से सी नहीं जाती
ये ज़बाँ हम से सी नहीं जाती
ज़िंदगी है कि जी नहीं जाती
इन फ़सीलों में वो दरारे हैं
जिन में बस कर नमी नहीं जाती
देखिए उस तरफ़ उजाला है
जिस तरफ़ रौशनी नहीं जाती
शाम कुछ पेड़ गिर गए वर्ना
बाम तक चाँदनी नहीं जाती
एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
मय कशो मय ज़रूरी है लेकिन
इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती
मुझ को ईसा बना दिया तुम ने
अब शिकायत भी की नहीं जाती
ज़िंदगी है कि जी नहीं जाती
इन फ़सीलों में वो दरारे हैं
जिन में बस कर नमी नहीं जाती
देखिए उस तरफ़ उजाला है
जिस तरफ़ रौशनी नहीं जाती
शाम कुछ पेड़ गिर गए वर्ना
बाम तक चाँदनी नहीं जाती
एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
मय कशो मय ज़रूरी है लेकिन
इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती
मुझ को ईसा बना दिया तुम ने
अब शिकायत भी की नहीं जाती
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
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dushyant kumar motivational shayari |
इस 'नदी' की धार में ठंडी हवा आती तो है
'नावं' जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है,
एक चिन्गारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है
एक खंडहर के हृदय सी,एक जंगली फूल सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
ये अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जा के बतियाती तो है
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो आकाश सी छाती तो है।
वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है
वो कर रहे हैं 'इश्क़' पे संजिदा गुफ़्तुगू,
मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है
सामान कुछ नहीं है फटे हाल है मगर
झोले में उस के पास कोई संविधान है
उस सरफिरे को यूँ नहीं बहला सकेंगे आप
वो आदमी नया है मगर सावधान है
फिसले जो उस जगह तो लुढ़कते चले गए
हम को पता नहीं था कि इतना ढलान है
देखे हैं हम ने दौर कई अब ख़बर नहीं
पावँ तले ज़मीन है या आसमान है
वो आदमी मिला था मुझे उस की बात से
ऐसा लगा कि वो भी बहुत बेज़बान है।
मत कहो आकाश में कोहरा घना है
मत कहो आकाश में कोहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का
क्या कारोगे सूर्य का क्या देखना है
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है
दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का
क्या कारोगे सूर्य का क्या देखना है
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है
दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
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दुष्यंत कुमार की कविताएं |
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
वो सलीबों के क़रीब आए तो हम को
क़ायदे क़ानून समझाने लगे हैं
एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिस में तहख़ानों से तहख़ाने लगे हैं
मछलियों में खलबली है अब सफ़ीने
इस तरफ़ जाने से कतराने लगे हैं
मौलवी से डाँट खा कर अहल-ए-मकतब
फिर उसी आयात को दोहराने लगे हैं
अब नई तहज़ीब के पेश-ए-नज़र हम
आदमी को भून कर खाने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
वो सलीबों के क़रीब आए तो हम को
क़ायदे क़ानून समझाने लगे हैं
एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिस में तहख़ानों से तहख़ाने लगे हैं
मछलियों में खलबली है अब सफ़ीने
इस तरफ़ जाने से कतराने लगे हैं
मौलवी से डाँट खा कर अहल-ए-मकतब
फिर उसी आयात को दोहराने लगे हैं
अब नई तहज़ीब के पेश-ए-नज़र हम
आदमी को भून कर खाने लगे हैं
इसे भी पढ़ें ➤ शराब पर कही गई लाजवाब शायरी
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहां तो तय था चिरांगा हर एक घर के लिये
कहां चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये,
यहां दरख़्तों- के साये में धूप लगती है चलो यहां से चले और उम्र भर के लिये,
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये,
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये,
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये,
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये।
यहां दरख़्तों- के साये में धूप लगती है चलो यहां से चले और उम्र भर के लिये,
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये,
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये,
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये,
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये।
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि, फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं,
मैं बेपनाह अँधेरों को सुबह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं,
तेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की तरह तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं,
तुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं को खा जाएँ अदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन नहीं,
तुझे क़सम है ख़ुदी को बहुत हलाक न कर तु इस मशीन का पुर्ज़ा है तू मशीन नहीं,
बहुत मशहूर है आएँ ज़रूर आप यहाँ ये मुल्क देखने लायक़ तो है हसीन नहीं,
ज़रा सा तौर-तरीक़ों में हेर फेर करो तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं।
मैं बेपनाह अँधेरों को सुबह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं,
तेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की तरह तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं,
तुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं को खा जाएँ अदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन नहीं,
तुझे क़सम है ख़ुदी को बहुत हलाक न कर तु इस मशीन का पुर्ज़ा है तू मशीन नहीं,
बहुत मशहूर है आएँ ज़रूर आप यहाँ ये मुल्क देखने लायक़ तो है हसीन नहीं,
ज़रा सा तौर-तरीक़ों में हेर फेर करो तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं।
नज़र नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
नज़र नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
जरा सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं
वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं
यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं
चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना ये गरम राख़ शरारों में ढल न जाए कहीं
तमाम रात तेरे मै कदे में मय पी है तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं
कभी मचान पे चढ़ने की आरज़ू उभरी कभी ये डर कि ये सीढ़ी फिसल न जाए कहीं
ये लोग होमो हवन में यकीन रखते है चलो यहां से चलें हाथ जल न जाए कहीं
वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं
यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं
चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना ये गरम राख़ शरारों में ढल न जाए कहीं
तमाम रात तेरे मै कदे में मय पी है तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं
कभी मचान पे चढ़ने की आरज़ू उभरी कभी ये डर कि ये सीढ़ी फिसल न जाए कहीं
ये लोग होमो हवन में यकीन रखते है चलो यहां से चलें हाथ जल न जाए कहीं
यह क्यों
हर उभरी नस मलने का अभ्यास
रुक-रुक कर चलने का अभ्यास
छाया में थमने की आदत
यह क्यों ?
जब देखो दिल में एक जलन
उल्टे उल्टे से चाल-चलन
सिर से पाँवों तक क्षत विक्षत
यह क्यों ?
जीवन के दर्शन पर दिन-रात
पण्डित विद्वानो जैसी बात
लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
यह क्यों ?
इसे भी पढ़ें ➤ सूफ़ी सुरेंद्र, चतुर्वेदी जी की चुनिंदा गजलें
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो
ए जो 'शहतीर' है, पलकों पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो,
दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो,
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो,
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे आज संदूक़ से वे ख़त तो निकालो यारो,
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो,
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो,
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की तुम ने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो,
दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो,
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो,
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे आज संदूक़ से वे ख़त तो निकालो यारो,
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो,
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो,
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की तुम ने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो,
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
हो गई है पीर पर्बत सी, पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए,
हर सड़क पर हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि, ये सूरत बदलनी चाहिए,
मेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन, आग जलनी चाहिए।
आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए,
हर सड़क पर हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि, ये सूरत बदलनी चाहिए,
मेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन, आग जलनी चाहिए।
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
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dushyant kumar quotes in hindi |
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ,
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ।
एक जंगल है तेरी आँखों में,
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।
तू किसी रेल-सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है,
मैं अगर रौशनी में आता हूँ।
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे,
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ।
मैं तुझे भूलने की कोशिश में,
आज कितने क़रीब पाता हूँ।
कौन ये फ़ासला निभाएगा,
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ।
मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए
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dushyant kumar famous poetry |
मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए,
ऐसा भी क्या परहेज़, ज़रा सी तो लीजिए
अब रिन्द बच रहे हैं ज़रा तेज़ रक़्स हो,
महफ़िल से उठ लिए हैं नमाज़ी तो लीजिए
पत्तों से चाहते हो बजें साज़ की तरह,
पेड़ों से पहले आप उदासी तो लीजिए
ख़ामोश रह के तुमने हमारे सवाल पर,
कर दी है शहर भर में मुनादी तो लीजिए
ये रौशनी का दर्द, ये सिरहन ,ये आरज़ू,,
ये चीज़ ज़िन्दगी में नहीं थी तो लीजिए
फिरता है कैसे-कैसे सवालों के साथ वो,
उस आदमी की जामातलाशी तो लीजिए.
परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं
परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं,
हवा में सनसनी घोले हुए हैं।
तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो,
तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं।
ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो,
क़ुरान-ओ-उपनिषद् खोले हुए हैं।
मज़ारों से दुआएँ माँगते हो,
अक़ीदे किस क़दर पोले हुए हैं।
हमारे हाथ तो काटे गए थे,
हमारे पाँव भी छोले हुए हैं।
कभी किश्ती, कभी बतख़, कभी जल,
सियासत के कई चोले हुए हैं।
हमारा क़द सिमट कर मिट गया है,
हमारे पैरहन झोले हुए हैं।
चढ़ाता फिर रहा हूँ जो चढ़ावे,
तुम्हारे नाम पर बोले हुए हैं।
चांदनी छत पे चल रही होगी
चांदनी छत पे चल रही होगी, अब अकेली टहल रही होगी। फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा, बर्फ़-सी वो पिघल रही होगी। कल का सपना बहुत सुहाना था, ये उदासी न कल रही होगी। सोचता हूँ कि बंद कमरे में, एक शमां-सी जल रही होगी। तेरे गहनों सी खनखनाती थी बाजरे की फ़सल रही होगी। जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया, उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी।dushyant kumar tu kisi rail si
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