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दुष्यंत कुमार त्यागी (1 सितंबर 1933 - 30 दिसंबर 1975) आधुनिक हिंदी साहित्य के कवि थे। उन्हें भारत के पहले हिंदी ग़ज़ल लेखक के रूप में जाना जाता है। भारत में, उन्हें आम तौर पर 20वीं शताब्दी के अग्रणी हिंदुस्तानी कवियों में से एक के रूप में पहचाना जाता है। वे नाटककार और साहित्यकार भी थे।
प्रारंभिक जीवन
दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के नवादा गाँव में एक त्यागी परिवार में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपने मुख्य विषय के रूप में हिंदी के साथ एमए किया।पेशा
व्यक्तिगत जीवन
दुष्यंत कुमार का विवाह श्रीमती से हुआ था। राजेश्वरी त्यागी।
मृत्यु और विरासत
दुष्यंत कुमार का 42 साल की उम्र में 31 दिसंबर 1975 को भोपाल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। डॉ. हरिवंशराय बच्चन के समकालीन दुष्यंत ने अपने जीवनकाल में हिंदी और उर्दू साहित्य में बहुमूल्य योगदान दिया।
- भारत में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (2011-2012) के दौरान "हो गई है पीर पर्वत सी" कविता अरविंद केजरीवाल द्वारा अक्सर गाई जाती थी।
- दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल 'साये में धूप' की पंक्तियाँ अक्सर कई कार्यक्रमों में इस्तेमाल की जाती हैं, और हिंदी फ़िल्म "हल्ला बोल" मेरे सीने में नहीं तो सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। स्टार प्लस ने अपने शो सत्यमेव जयते के प्रोमो में "सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, सारी कोशिश है, कि ये सूरत बदलनी चाहिए" इन पंक्तियों का इस्तेमाल किया।
- भारतीय डाक विभाग ने सितंबर 2009 में दुष्यंत कुमार की छवि के साथ एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।
- दुष्यंत कुमार (दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय) को समर्पित एक संग्रहालय C.T.T में मौजूद है। नगर, भोपाल, मध्य प्रदेश।
- समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्म मसान में "तू किसी रेल सी गुजरी है" कविता को एक गीत के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
- एबीपी न्यूज और प्रसिद्ध हिंदी कवि कुमार विश्वास ने 12 और 13 नवंबर, 2016 को प्रसारित अपने कार्यक्रम महाकवि में दुष्यंत कुमार पर एक एपिसोड बनाया।
कुछ प्रमुख रचनाएँ
- कहाँ तो तय था
- कैसे मंजर
- खंडहर बचे हुए हैं
- जो शहतीर है
- ज़िंदगानी का कोई मकसद
- आज सड़कों पर लिखे हैं
- मत कहो, आकाश में
- धूप के पाँव
- गुच्छे भर अमलतास
- और मसीहा मर गया
- मन के कोण
- साये में धूप
- छोटे-छोटे सवाल
- आँगन में एक वृक्ष
- दुहरी जिंदगी
- इस नदी की धार में
- हो गई है पीर पर्वत-सी
- तू किसी रेल सी गुज़रती है
दुष्यंत कुमार हिंदी कविता और गजल के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्धि हासिल की तो आइये पढ़ते हैं इस महान कवि की कुछ लोकप्रिय कविताएं और गजलें। dushyant kumar poems in hindi
दुष्यंत कुमार की बेस्ट कविताएं और गजलें
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये (Dushyant Kumar Poetry)
ये ज़बाँ हम से सी नहीं जाती (Dushyant Kumar Poems)
ज़िंदगी है कि जी नहीं जाती
इन फ़सीलों में वो दरारे हैं
जिन में बस कर नमी नहीं जाती
देखिए उस तरफ़ उजाला है
जिस तरफ़ रौशनी नहीं जाती
शाम कुछ पेड़ गिर गए वर्ना
बाम तक चाँदनी नहीं जाती
एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
मय कशो मय ज़रूरी है लेकिन
इतनी कड़वी कि पी नहीं जाती
मुझ को ईसा बना दिया तुम ने
अब शिकायत भी की नहीं जाती
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है (Dushyant Kumar Poems in Hindi)
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वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है (Dushyant Kumar Ghazal in Hindi)
मत कहो आकाश में कोहरा घना है (Dushyant Kumar Best Poems)
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का
क्या कारोगे सूर्य का क्या देखना है
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है
दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है
कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं (Dushyant Kumar Famous Poem)
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दुष्यंत कुमार की कविताएं |
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कमल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
वो सलीबों के क़रीब आए तो हम को
क़ायदे क़ानून समझाने लगे हैं
एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिस में तहख़ानों से तहख़ाने लगे हैं
मछलियों में खलबली है अब सफ़ीने
इस तरफ़ जाने से कतराने लगे हैं
मौलवी से डाँट खा कर अहल-ए-मकतब
फिर उसी आयात को दोहराने लगे हैं
अब नई तहज़ीब के पेश-ए-नज़र हम
आदमी को भून कर खाने लगे हैं
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये (Dushyant Kumar Poetry)
यहां दरख़्तों- के साये में धूप लगती है चलो यहां से चले और उम्र भर के लिये,
न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये,
ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये,
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये,
जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये।
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं (Dushyant Kumar Poems)
मैं बेपनाह अँधेरों को सुबह कैसे कहूँ मैं इन नज़ारों का अँधा तमाशबीन नहीं,
तेरी ज़ुबान है झूठी ज्म्हूरियत की तरह तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं,
तुम्हीं से प्यार जतायें तुम्हीं को खा जाएँ अदीब यों तो सियासी हैं पर कमीन नहीं,
तुझे क़सम है ख़ुदी को बहुत हलाक न कर तु इस मशीन का पुर्ज़ा है तू मशीन नहीं,
बहुत मशहूर है आएँ ज़रूर आप यहाँ ये मुल्क देखने लायक़ तो है हसीन नहीं,
ज़रा सा तौर-तरीक़ों में हेर फेर करो तुम्हारे हाथ में कालर हो आस्तीन नहीं।
नज़र नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं (Dushyant Kumar Poems in Hindi)
वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं
यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं
चले हवा तो किवाड़ों को बंद कर लेना ये गरम राख़ शरारों में ढल न जाए कहीं
तमाम रात तेरे मै कदे में मय पी है तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं
कभी मचान पे चढ़ने की आरज़ू उभरी कभी ये डर कि ये सीढ़ी फिसल न जाए कहीं
ये लोग होमो हवन में यकीन रखते है चलो यहां से चलें हाथ जल न जाए कहीं
यह क्यों (Dushyant Kumar Ghazal in Hindi)
हर उभरी नस मलने का अभ्यासरुक-रुक कर चलने का अभ्यास
छाया में थमने की आदत
यह क्यों ?
जब देखो दिल में एक जलन
उल्टे उल्टे से चाल-चलन
सिर से पाँवों तक क्षत विक्षत
यह क्यों ?
जीवन के दर्शन पर दिन-रात
पण्डित विद्वानो जैसी बात
लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
यह क्यों ?
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो (Dushyant Kumar Best Poems)
दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो,
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो,
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे आज संदूक़ से वे ख़त तो निकालो यारो,
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो,
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो,
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की तुम ने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो,
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए (Dushyant Kumar Famous Poem)
आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए,
हर सड़क पर हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना, मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि, ये सूरत बदलनी चाहिए,
मेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन, आग जलनी चाहिए।
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ (Dushyant Kumar Poems)
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dushyant kumar quotes in hindi |
मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए (Dushyant Kumar Poetry)
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dushyant kumar famous poetry |
परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं (Dushyant Kumar Best Poems In Hindi)
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