मस्कार दोस्तों आजकल यह आर्टिकल लोकप्रिय शायर राजेश रेड्डी जी के कुछ चुनिंदा गजल और शेरों पर आधारित है
राजेश रेड्डी जी का जन्म 22 जुलाई 1952 को नागपुर में हुआ था राजेश रेड्डी जी के अब तक 3 ग़ज़ल संग्रह उड़ान, आसमान से आगे, व, वजूद, प्रकाशित हो चुके हैं|
राजेश रेड्डी जी अपने अलग अंदाज में शेर पढ़ने के लिए भी जाने जाते हैं | इनकी गजलों को पंकज उदास, जगजीत सिंह, भूपेंद्र, और राजकुमार रिजवी, ने गाया है |
राजेश रेड्डी की TOP 10 लोकप्रिय ग़ज़लें | Rajesh Reddy Shayari in Hindi
1. ये जो ज़िन्दगी की किताब है
ये जो ज़िन्दगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है|
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है|
कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है,
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है|
कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया,
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी कहीं मेहरबान बेहिसाब है|
कहीं आँसुओं की है दास्ताँ कहीं मुस्कुराहटों का बयाँ,
कहीं बर्क़तों की है बारिशें कहीं तिश्नगी बेहिसाब है|
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| ye jo zindgi ki kitab hai |
2. शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है
जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं
सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी
और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं
ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद
फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं
आपके रस्ते हैं आसाँ आपकी मंजिल क़रीब
ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं
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| sham ko jis waqt ghar khali |
3. अब क्या बताएँ टूटे हैं
अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम
ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम
क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून
नाराज़ हैं ज़मीं से ख़फ़ा आसमाँ से हम
अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास
लेने लगे हैं काम यक़ीं का गुमाँ से हम
लेकिन हमारी आँखों ने कुछ और कह दिया
कुछ और कहते रह गए अपनी ज़बाँ से हम
आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम
मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं
ग़ाएब हुए हैं जब से तिरी दास्ताँ से हम
ग़म बिक रहे थे मेले में ख़ुशियों के नाम पर
मायूस हो के लौटे हैं हर इक दुकाँ से हम
4. ज़िन्दगी तूने लहू ले के
ज़िन्दगी तूने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं|
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं|
मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशि ले लो,
मेरे हाथों में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं|
हमने देखा है कई ऐसे ख़ुदाओं को यहाँ,
सामने जिन के वो सच मुच का ख़ुदा कुछ भी नहीं|
या ख़ुदा अब के ये किस रंग से आई है बहार,
ज़र्द ही ज़र्द है पेड़ों पे हरा कुछ भी नहीं|
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है. किसी बच्चे की तरह,
या तो सब कुछ ही इसे चाहिये या कुछ भी नहीं|
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| zindgi tune lahu leke diya kuch bhi nahi |
5. मिट्टी का जिस्म लेके मैं
मिट्टी का जिस्म लेके मैं पानी के घर में हूँ,
मंज़िल है मेरी मौत, मैं हर पल सफ़र में हूँ
होना है मेरा क़त्ल ये मालूम है मुझे,
लेकिन ख़बर नहीं कि मैं किसकी नज़र में हूँ
पीकर भी ज़हरे-ज़िन्दगी ज़िन्दा हूँ किस तरह
जादू ये कौन-सा है, मैं किसके असर में हूँ
अब मेरा अपने दोस्त से रिश्ता अजीब है,
हर पल वो मेरे डर में है, मैं उसके डर में हूँ
मुझसे न पूछिए मेरे साहिल की दूरियाँ,
मैं तो न जाने कब से भँवर-दर-भँवर में हूँ
6. यूँ देखिये तो आंधी में
यूँ देखिये तो आंधी में बस इक शजर गया,
लेकिन न जाने कितने परिन्दों का घर गया
जैसे ग़लत पते पे चला आए कोई शख़्स,
सुख ऐसे मेरे दर पे रुका और गुज़र गया
मैं ही सबब था अबके भी अपनी शिकस्त का,
इल्ज़ाम अबकी बार भी क़िस्मत के सर गया
अर्से से दिल ने की नहीं सच बोलने की ज़िद,
हैरान हूँ मैं कैसे ये बच्चा सुधर गया
उनसे सुहानी शाम का चर्चा न कीजिए,
जिनके सरों पे धूप का मौसम ठहर गया
जीने की कोशिशों के नतीज़े में बारहा,
महसूस ये हुआ कि मैं कुछ और मर गया
7. रोज़ सवेरे दिन का निकलना
रोज़ सवेरे दिन का निकलना, शाम में ढलना जारी है,
जाने कब से रूहों का ये ज़िस्म बदलना जारी है
तपती रेत पे दौड़ रहा है दरिया की उम्मीद लिए,
सदियों से इन्सान का अपने आपको छलना जारी है
जाने कितनी बार ये टूटा जाने कितनी बार लुटा,
फिर भी सीने में इस पागल दिल का मचलना जारी है
बरसों से जिस बात का होना बिल्कुल तय सा लगता था,
एक न एक बहाने से उस बात का टलना जारी है
तरस रहे हैं एक सहर को जाने कितनी सदियों से,
वैसे तो हर रोज़ यहाँ सूरज का निकलना जारी है
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8. ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
वहाँ भी रेत का अम्बार होगा
ये सारे शहर में दहशत सी क्यूँ है
यक़ीनन कल कोई त्यौहार होगा
बदल जाएगी उस बच्चे की दुनिया
जब उस के सामने अख़बार होगा
उसे नाकामियाँ ख़ुद ढूँड लेंगी
यहाँ जो साहब-ए-किरदार होगा
समझ जाते हैं दरिया के मुसाफ़िर
जहाँ मैं हूँ वहाँ मंजधार होगा
ज़माने को बदलने का इरादा
कहा तो था तुझे बेकार होगा
9. रंग मौसम का हरा था पहले
रंग मौसम का हरा था पहले
पेड़ ये कितना घना था पहले
मैं ने तो बाद में तोड़ा था इसे
आईना मुझ पे हँसा था पहले
जो नया है वो पुराना होगा
जो पुराना है नया था पहले
बाद में मैं ने बुलंदी को छुआ
अपनी नज़रों से गिरा था पहले
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10. मोड़ कर अपने अन्दर की दुनिया से मुँह
मोड़ कर अपने अन्दर की दुनिया से मुँह,
हम भी दुनिया-ए-फ़ानी के हो जाएँ क्या।
जान कर भी कि ये सब हक़ीक़त नहीं,
झूटी-मूटी कहानी के हो जाएँ क्या।
कब तलक बैठे दरिया किनारे यूँ ही,
फ़िक्र दरिया के बारे में करते रहें,
डाल कर अपनी कश्ती किसी मौज पर,
हम भी उसकी रवानी के हो जाएँ क्या।
सोचते हैं कि हम अपने हालात से,
कब तलक यूँ ही तकरार करते रहें,
हँसके सह जाएँ क्या वक़्त का हर सितम,
वक़्त की मेहरबानी के हो जाएँ क्या।
ज़िन्दगी वो जो ख़्वाबों-ख़्यालों में है,
वो तो शायद मयस्सर न होगी कभी,
ये जो लिक्खी हुई इन लकीरों में है,
अब इसी ज़िन्दगानी के हो जाएँ क्या।
हमने ख़ुद के मआनी निकाले वही,
जो समझती रही है ये दुनिया हमें,
आईने में मआनी मगर और हैं,
आईने के मआनी के हो जाएँ क्या।
हमने सारे समुन्दर तो सर कर लिए,
उनके सारे ख़ज़ाने भी हाथ आ चुके,
अब ज़रा अपने अन्दर का रुख़ करके हम,
दूर तक गहरे पानी के हो जाएँ क्या।