gulzar shayari नमस्कार दोस्तों- अपने शब्दों से अनोखी तस्वीरें करने वाले गुलजार साहब को भला कौन साहित्य प्रेमी नहीं जानता।
गुलजार जी का जन्म 18 अगस्त 1936 को भारत के झेलम जिला, पंजाब के दिना गांव में हुआ था, जो कि आज पाकिस्तान में है।
बंटवारे के बाद इनका परिवार पंजाब के अमृतसर में आकर बस गया, और वहां से गुलजार साहब मुंबई आ गए।
गुलजार जी का पूरा नाम, संपूर्ण सिंह कालरा, है गुलजार जी कवि के अलावा निर्देशक, गीतकार, पटकथा लेखक, और निर्माता भी हैं। गुलजार जी का नाम उन चंद मशहूर शायरों में है, जो अपने नज्मों गीतों और कहानियों के लिए प्रसिद्ध हैं
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गुलज़ार साहब के 50 मशहूर शेर (gulzar shayari in hindi)
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gulzar shayari on love |
“ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
zindagi youn hui basar tanha
qaafila saath aur safar tanha
”
“मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
main chup karaata hoon har shab umadati baarish ko
magar ye roz gai baat chhed deti hai
”
“कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
kabhi to chaunk ke dekhe koi hamaari taraf
kisi ki aankh mein ham ko bhi intizaar dikhe
”
“यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
youn bhi ik baar to hota ki samundar bahata koi
ehasaas to dariya ki ana ka hota
”
gulzar shayari in hindi 2 lines
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gulzar shayari din aise gujarta hai |
“दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
din kuchh aise guzaarata hai koi
jaise ehasaan utaarata hai koi
”
“तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
tumhaari khushk si aankhen bhali nahin lagatin
vo saari cheezen jo tum ko rulaen, bheji hain
”
“आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
aap ke baad har ghadi ham ne
aap ke saath hi guzaari hai
”
“अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
apane saye se chaunk jaate hain
umr guzaree hai is qadar tanha
”
“आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
aaina dekh kar tasalli hui
ham ko is ghar mein jaanata hai koi
”gulzar sad shayari / गुलजार दोस्ती शायरी
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gulzar poetry two lines in hindi
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“
शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
shaam se aankh mein nami si hai
aaj phir aap ki kami si hai
”
“वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
waqt rahata nahin kahin tik kar
aadat is ki bhi aadami si hai
”
“जिस की आंखों में कटी थीं सदियां
उस ने सदियों की जुदाई दी है
jis ki aankhon mein kati thin sadiyaan
us ne sadiyon ki judai di hai
”
“ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहां होगा
ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
zamin sa doosara koi sakhi kahaan hoga
zara sa beej utha le to ped deti hai
”
“हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
haath chhuten bhi to rishte nahin chhoda karate
waqt ki shaakh se lamhe nahin toda karate
”gulzar shayari in hindi, gulzar quotes, status gulzar quotes in hindi,
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gulzar quotes in hindi |
“
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
khushaboo jaise log mile afsaane mein
ek puraana khat khola anajaane mein
”
“ कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
kitani lambi khaamoshi se guzara hoon
un se kitana kuchh kahane ki koshish ki
”
“सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
sahama sahama dara sa rahata hai
jaane kyon jee bhara sa rahata hai
”
“कांच के पीछे चाँद भी था और कांच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
kaanch ke piche chand bhi tha aur kanch ke upar kai bhi
tino the ham vo bhi the aur main bhi tha tanhai bhi
”
“जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
jab bhi ye dil udaas hota hai
jaane kaun aas-paas hota hai
”
“हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इन्त्जार किया
ham ne aksar tumhaari raahon mein
ruk kar apana hi intjaar kiya
”gulzar ki shayari / गुलजार शायरी इमेज
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gulzar 2 line shayari in hindi |
“
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
dil par dastak dene kaun aa nikala hai
kis ki aahat sunata houn virane mein
”
“कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
koi khaamosh zakhm lagati hai
zindagi ek nazm lagati hai
”
“ तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ायें भेज दो हम ने ख़तायें भेजी हैं
tumhaare khvaab se har shab lipat ke sote hain
sazayen bhej do ham ne khatayen bheji hain
”
“कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है
kal ka har waaqia tumhara tha
aaj ki daastaan hamaari hai
”
“देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
der se goonjate hain sanaate jaise
ham ko pukarata hai koi
”
“एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की
ek hi khwaab ne sari raat jagaaya hai
main ne har karavat sone ki koshish ki
”
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gulzar shayari on life, गुलज़ार शायरी
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shayari of gulzar |
“उसी का ईमाँ बदल गया है
कभी जो मेरा ख़ुदा रहा था
usi ka imaan badal gaya hai
kabhi jo mera khuda raha tha
”
“भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
bhare hain raat ke reze kuchh aise
aankhon mein ujaala ho to ham aankhen jhapakate rahate hain
”
“राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद
raakh ko bhi kured kar dekho
abhee jalata ho koi pal shaayad
”
“वो एक दिन एक अजनबी को
मेरी कहानी सुना रहा था
vo ek din ek ajanabi ko
meri kahaani suna raha tha
”
“ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है
zindagi par bhi koi zor nahin
dil ne har cheez parai di hai
”
“ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
दर्द दिल का लिबास होता है
zakhm kahate hain dil ka gahana hai
dard dil ka libaas hota hai
”gulzar ki shayari, गुलज़ार दिल से शायरी
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gulzar shayari images
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“
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
vo umr kam kar raha tha meri
main saal apane badha raha tha
”
“आँखों के पोछने से लगा आग का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
aankhon ke pochhane se laga aag ka pata
youn chehara pher lene se chhupata nahin dhuaan
”
“यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
सोंधी-सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी
yaadon ki bauchhaaron se jab palaken bheegane lagati hain
sondhee-sondhee lagatee hai tab maazi ki rusvai bhi
”
“ये शुक्र है कि मेरे पास तेरा ग़म तो रहा
वर्ना ज़िंदगी भर को रुला दिया होता
ye shukr hai ki mere paas tera gam to raha
varna zindagi bhar ko rula diya hota
”
“काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता
kaanch ke paar tire haath nazar aate hain
kaash khushaboo ki tarah rang hina ka hota
”
“रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
ruke ruke se qadam ruk ke baar baar chale
qaraar de ke tire dar se be-qaraar chale
”
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gulzar hindi shayari |
“
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी
उन की बात सुनी भी हम ने अपनी बात सुनाई भी
khaamoshi ka haasil bhi ik lambi si khaamoshi thi
un ki baat suni bhi ham ne apani baat sunai bhi
”
“चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें
chand ummiden nichodi thi to aahen tapakeen
dil ko pighalaen to ho sakata hai saansen nikalen
”
“ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डाँवा-डोल कभी
ye dil bhi dost zameen ki tarah
ho jaata hai daanva-dol kabhee
”
“ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं
ye rotiyaan hain ye sikke hain aur daere hain
ye ek dooje ko din bhar pakadate rahate hain
”
“चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ
chulhe nahin jalae ki basti hi jal gai
kuchh roz ho gaye hain ab uthata nahin dhuaan
”
“आग में क्या क्या जला है शब भर
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है
aag mein kya kya jala hai shab bhar
kitanee khush-rang dikhaee dee hai
”
gulzar hindi shayari, गुलज़ार शायरी इन हिंदी लिरिक्स
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gulzar sad shayari in hindi |
“
फिर वहीं लौट के जाना होगा
यार ने कैसी रिहाई दी है
phir vahin laut ke jaana hoga
yaar ne kaisi rihai di hai
”
“रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
raat guzarate shaayad thoda vaqt lage
dhoop undelo thodi si paimaane mein
”
“अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
apane maazee ki justujoo mein bahaar
peele patte talaash karati hai
”
gulzar shayari, gulzar nazm (गुलज़ार नज़्म इन हिंदी)
साँस लेना भी कैसी आदत है
साँस लेना भी कैसी आदत है,
जिए जाना भी क्या रिवायत है।
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में,
पाँव बेहिस हैं चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है,
कितने बरसों से कितनी सदियों से
जिए जाते हैं जिए जाते हैं,
आदतें भी अजीब होती हैं ।
मैं उड़ते हुए पंछियों को
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ,
कुचलता हुआ, घास की कलग़ियाँ।
गिराता हुआ गर्दनें इन दरख़्तों की, छुपता हुआ
जिन के पीछे से,
निकला चला जा रहा था वो सूरज
तआक़ुब में था उस के मैं
गिरफ़्तार करने गया था उसे,
जो ले के मिरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था।
आदमी बुलबुला है पानी का
आदमी बुलबुला है पानी का,
और पानी की बहती सतहा पर।
टूटता भी है डूबता भी है
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
न समुंदर निगल सका इस को
न तवारीख़ तोड़ पाई है।
वक़्त की हथेली पर बहता,
आदमी बुलबुला है पानी का।
अलाव
रात-भर सर्द हवा चलती रही,
रात-भर हम ने अलाव तापा।
मैं ने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं
तुम ने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े,
मैं ने जेबों से निकालीं सभी सूखी नज़्में
तुम ने भी हाथों से मुरझाए हुए ख़त खोले।
अपनी इन आँखों से मैं ने कई माँजे तोड़े
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकीं,
तुम ने पलकों पे नमी सूख गई थी सो गिरा दी
रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हम को।
काट के डाल दिया जलते अलाव में उसे
रात-भर फूँकों से हर लौ को जगाए रक्खा,
और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रक्खा
रात-भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हम ने।
रूह देखी है कभी
रूह देखी है...
कभी रूह को महसूस किया है?
जागते जीते हुए दूधिया कोहरे से लिपट कर
साँस लेते हुए उस कोहरे को महसूस किया है,
या शिकारे में किसी झील पे जब रात बसर हो
और पानी के छपाकों में बजा करती हैं टुल्लियाँ,
सुबकियाँ लेती हवाओं के भी बैन सुने हैं।
चौदहवीं रात के बर्फ़ाब से इक चाँद को जब
ढेर से साए पकड़ने के लिए भागते हैं ,
तुम ने साहिल पे खड़े गिरजे की दीवार से लग कर
अपनी गहनाती हुई कोख को महसूस किया है।
जिस्म सौ बार जले तब भी वही मिट्टी का ढेला
रूह इक बार जलेगी तो वो कुंदन होगी
रूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है।
अकेले
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो,
न किसी शाख़ का साया है, न दीवार की टेक।
न किसी आँख की आहट, न किसी चेहरे का शोर
दूर तक कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं,
चंद क़दमों के निशाँ हाँ कभी मिलते हैं कहीं
साथ चलते हैं जो कुछ दूर फ़क़त चंद क़दम।
और फिर टूट के गिर जाते हैं ये कहते हुए
अपनी तन्हाई लिए आप चलो, तन्हा अकेले ,
साथ आए जो यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं
किस क़दर सीधा, सहल, साफ़ है रस्ता देखो।
मुझसे इक नज़्म का वादा है
मुझसे इक नज़्म का वादा है,
मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में,
जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिए चाँद,
उफ़क़ पर पहुंचे
दिन अभी पानी में हो,
रात किनारे के क़रीब
न अँधेरा, न उजाला हो,
यह न रात, न दिन
ज़िस्म जब ख़त्म हो
और रूह को जब सांस आए
मुझसे इक नज़्म का
वादा है मिलेगी मुझको।
एक ही ख़्वाब कई बार
एक ही ख़्वाब कई बार यूँही देखा मैं ने
तू ने साड़ी में उड़स ली हैं मेरी चाबियाँ घर की,
और चली आई है बस यूँ ही मेरा हाथ पकड़ कर
घर की हर चीज़ सँभाले हुए अपनाए हुए तू,
तू मिरे पास मेरे घर पे मेरे साथ है "सोनूँ"
मेज़ पर फूल सजाते हुए देखा है कई बार,
और बिस्तर से कई बार जगाया भी है तुझ को
चलते-फिरते तेरे क़दमों की वो आहट भी सुनी है
गुनगुनाती हुई निकली है ग़ुस्ल-ख़ाने से जब भी
अपने भीगे हुए बालों से टपकता हुआ पानी,
मेरे चेहरे पर छिड़क देती है तू "सोनूँ" की बच्ची
फ़र्श पर लेट गई है तू कभी रूठ के मुझ से,
और कभी फ़र्श से मुझ को भी उठाया है मना कर
ताश के पत्तों पे लड़ती है कभी खेल में मुझ से ,
और कभी लड़ती भी ऐसे है कि बस खेल रही है
और आग़ोश में नन्हे को..
और मालूम है जब देखा था ये ख़्वाब तुम्हारा,
अपने बिस्तर पे मैं उस वक़्त पड़ा जाग रहा था।
एक और रात
रात चुपचाप दबे पाँव चले जाती है,
रात ख़ामोश है रोती नहीं हँसती भी नहीं
काँच का नीला सा गुम्बद है उड़ा जाता है
ख़ाली-ख़ाली कोई बजरा सा बहा जाता है,
चाँद की किरनों में वो रोज़ सा रेशम भी नहीं
चाँद की चिकनी डली है कि घुली जाती है।
और सन्नाटों की इक धूल उड़ी जाती है
काश इक बार कभी नींद से उठ कर तुम भी,
हिज्र की रातों में ये देखो तो क्या होता है।
बस इक लम्हे का झगड़ा था
बस इक लम्हे का झगड़ा था,
दर - ओ - दीवार पर ऐसे छनाके से गिरी
आवाज़ जैसे काँच गिरता है।
हर इक शय में गईं उड़ती हुई, जलती हुई किर्चें,
नज़र में, बात में, लहजे में, सोच और साँस के अंदर
लहू होना था इक रिश्ते का सो वो हो गया उस दिन,
उसी आवाज़ के टुकड़े उठा के फ़र्श से उस शब
किसी ने काट लीं नब्ज़ें
न की आवाज़ तक कुछ भी
कि कोई जाग न जाए।
चम्पई धूप
ख़लाओं में तैरते जज़ीरों पे चम्पई धूप,
देख कैसे बरस रही है।
महीन कोहरा सिमट रहा है
हथेलियों में अभी तलक,
तेरे नर्म चेहरे का लम्स ऐसे छलक रहा है
कि जैसे सुबह को ओक में भर लिया हो मैं ने,
बस एक मद्धम सी रौशनी
मेरे हाथों पैरों में बह रही है,
तिरे लबों पे ज़बान रख कर
मैं नूर का वो हसीन क़तरा भी पी गया हूँ,
जो तेरी उजली धुली हुई रूह से फिसल कर तेरे लबों पर
ठहर गया था।
पेंटिंग
रात कल गहरी नींद में थी जब
एक ताज़ा सफ़ेद कैनवास पर।
आतिशीं, लाल सुर्ख़ रंगों से
मैं ने रौशन किया था इक सूरज,
सुब्ह तक जल गया था वो कैनवास
राख बिखरी हुई थी कमरे में।
चाँद क्यूँ अब्र की उस मैली सी गठरी
चाँद क्यूँ अब्र की उस मैली सी गठरी में छुपा था
उस के छुपते ही अंधेरों के निकल आए थे नाख़ुन,
और जंगल से गुज़रते हुए मासूम मुसाफ़िर...
अपने चेहरों को खरोंचों से बचाने के लिए चीख़ पड़े थे
चाँद क्यूँ अब्र की उस मैली सी गठरी में छुपा था,
उस के छुपते ही उतर आए थे शाख़ों से लटकते हुए
आसेब थे जितने,
और जंगल से गुज़रते हुए रहगीरों ने गर्दन में उतरते
हुए दाँतों से सुना था,
पार जाना है तो पीने को लहू देना पड़ेगा
चाँद क्यूँ अब्र की उस मैली सी गठरी में छुपा था,
ख़ून से लुथड़ी हुई रात के रहगीरों ने दो ज़ानू प गिर कर
रौशनी-रौशनी चिल्लाया था, देखा था फ़लक की "जानिब"
चाँद ने गठरी से एक हाथ निकाला था,
दिखाया था चमकता हुआ ख़ंजर।
वक़्त की आँख पे पट्टी बाँध के
वक़्त की आँख पे पट्टी बाँध के खेल रहे थे आँख मिचोली
रात और दिन और चाँद और मैं..
जाने कैसे कायनात में अटका पाँव
दूर गिरा जा कर मैं जैसे
रौशनी से धक्का खा के, परछाईं ज़मीं पर गिरती है,
तय्या छुने से पहले ही
वक़्त ने चोर कहा और आँखें खोल के मुझ को पकड़ लिया।
शेर और ख़रगोश
बहुत ही बड़े एक जंगल में इक बार
बहुत ही बड़ा एक ही शेर था,
बहुत ही बड़ी उस की मूँछें भी थीं
बहुत ही बड़ी पूँछ उस शेर की,
कभी पूँछ ऊपर उठाता था जब
तो पंछी भी पेड़ों पे डर जाते थे,
निकलता था जब ग़ार से और ग़ुर्राता था
तो जंगल में सब डर के छुप जाते थे,
बहुत सहमे-सहमे से रहते थे सब
कभी कोई गीदड़ कभी लोमड़ी,
कभी नील गाय कभी कोई सुअर
कभी एक दो और कभी तीन तीन,
जहाँ भी मिले जिस क़दर भी शिकार
वो जंगल का राजा था खा जाता था,
कोई भी अम्न से न जी पाता था
बहुत सोच कर सब के सब एक दिन,
सभा में मिले और किए फ़ैसले
अगर शेर बाहर न आया करें,
तो हर रोज़ पर्ची निकाला करें
कि हर रोज़ बस एक ही जानवर,
ख़ुद ही शेर के ग़ार में भेज कर
चैन से जी सकें,
मगर शेर जी से ये कैसे कहें
सभा के सभी सोच में पड़ गए,
बहुत देर बाद
बड़े पीर बकरे जी बोले कि मैं,
मेरी उम्र तो यूँ ही बाक़ी है कम
मुझे खाए जाता है बच्चों का ग़म,
अगर शेर ने खा लिया भी तो क्या
सुनाया बड़े पीर ने जा के जंगल का ये फ़ैसला,
शेर जी सुन के पहले तो चौंके ज़रा
मगर ग़ौर से सोचा जब मामला,
तो समझे चलो अपनी मेहनत बची
ये जंगल भी अपना है राजा भी हम,
हमें ही तो होगा न प्रजा का ग़म
ज़बाँ फेर कर ख़ुश्क होंटों पे बोले,
ख़बर कर दी जाएगी जनता को कल
मगर आज के दिन हूलूम-हूलूम,
आज तो आप ही मेरी ख़ुराक हो
कहा और बस खा गया बूढे बकरे को शेर,
दिन गुज़रते गए
लोग घटते गए महीने गए,
यूँ ही रोज़ ख़ुराक जाती रही शेर के ग़ार तक
कि इक दिन निकल आई बारी जो ख़रगोश की,
वो घबरा गया
चला धीमे-धीमे से कछुवे की चाल,
पहुँचते-पहुँचते उसे ग़ार तक शाम होने लगी
उसे देख कर शेर भन्ना गया,
छटंकी बराबर ये ख़ुराक भेजी है जंगल ने
और इस क़दर देर से,
मिटा दूँगा ख़रगोश की ज़ात को
मैं जंगल का जंगल ही खा जाऊँगा,
सुना और ख़रगोश रोने लगा
गिड़गिड़ाने लगा,
हुज़ूर इस में मेरी नहीं है ख़ता
न जंगल सभा का कोई दोष है
जंगल ने तो सात ख़रगोश भेजे मगर
मगर क्या?
मगर सर,
मगर क्या क्यूँ हकला रहे हो बताओ मुझे
मगर मगर मगर सर,
कहाँ हैं तुम्हारे छह ग़द्दार साथी
वो ख़रगोश फिर से सिसकने लगा,
हमें रास्ते में हुज़ूर एक
ज़ालिम ने रोका था,
और बहुत गालियाँ आप को दीं
कहा मैं दोहराऊँ कैसे वो सब कुछ हुज़ूर,
कहा जाओ कह दो मेरे साथियों को वही खा गया
ये सुनना था कि शेर ग़ुर्राया मुंछों में बल आ गए,
अकड़ने लगी उस की हंटरी पूँछ
और आँखों में बस ख़ून उतरने लगा,
कहाँ है किधर है बता कौन है
मेरे होते किस का हुआ हौसला,
कि मेरी रे-आया पे कोई ज़ुल्म कर सके,
वो है आप की ज़ात का सर मगर
मैं म मैं मैं वो कहता था सर,
ज ज जंगल का राजा अस्ल
मैं वो वो है
लपक के उठा शेर बोला बता,
कहाँ है बता उस को कच्चा चबा जाऊँगा
वो पीपल की पौड़ी के पीछे,
जो कुआँ है ना
वहीं पे छुपा है वो कायर हुज़ूर
पलक के झपकने में पहुँचे कुएँ पे,
ख़रगोश और शेर
खड़े हो के कुएँ पे उस शेर ने,
जो पानी में देखा तो हाँ शेर था
वो पानी में उस की ही परछाईं थी,
मगर शेर समझा वही दूसरा शेर है
दिखाए जो उस ने भयानक से दाँत,
तो उस ने भी दिखलाए वैसे ही दाँत
ये ग़ुर्राया, ग़ुर्राई परछाईं भी,
पलट के कुएँ से जो आवाज़ लौटी
वो समझा वो आया,
ये कूदा छपाक से पानी में और
डूब के मर गया,
ख़ुशी से जो उछला है ख़रगोश तो
अभी तक उछल कर ही चलता है वो,
मैं अगर छोड़ न देता
मैं अगर छोड़ न देता,
तो मुझे छोड़ दिया होता, उसने
इश्क़ में लाज़मी है,
हिज्रो-विसाल मगर
इक अना भी तो है,
चुभ जाती है पहलू बदलने में कभी
रात भर पीठ लगाकर,
भी तो सोया नहीं जाता।
कैसी ये मोहर लगा दी तूने
कैसी ये मोहर लगा दी तूने?
शीशे के पार से चिपका तेरा चेहरा,
मैंने चूमा तो मेरे चेहरे पे छाप उतर आयी है उसकी,
जैसे कि मोहर लगा दी तूने,
तेरा चेहरा ही लिये घूमता हूँ, शहर में तबसे,
लोग मेरा नहीं, एहवाल तेरा पूछते हैं, मुझ से।
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दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई,
जैसे एहसाँ उतारता है कोई।
दिल में कुछ यूँ सँभालता हूँ "ग़म"
जैसे ज़ेवर सँभालता है कोई,
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई।
पेड़ पर पक गया है फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई,
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई।
हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं
हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं,
वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं।
ये कैसा रिश्ता हुआ इश्क में वफ़ा का भला,
तमाम उम्र में दो चार छ: गिले भी नहीं।
इस उम्र में भी कोई अच्छा लगता है लेकिन,
दुआ-सलाम के मासूम सिलसिले भी नहीं।
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते,
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते।
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते,
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते।
जागने पर भी नहीं आँख से गिरतीं किर्चें
इस तरह ख़्वाबों से आँखें नहीं फोड़ा करते,
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते।
जा के कोहसार से सर मारो कि आवाज़ तो हो,
ख़स्ता दीवारों से माथा नहीं फोड़ा करते।
जिए जाने की रस्म जारी है
दर्द हल्का है साँस भारी है,
जिए जाने की रस्म जारी है।
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है,
रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है।
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है,
कल का हर वाक़ि-आ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है।
शाम से आँख में नमी सी है
शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आप की कमी सी है।
दफ़्न कर दो हमें कि साँस आए
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,
कौन पथरा गया है आँखों में
बर्फ़ पलकों पे क्यूँ जमी सी है।
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है,
आइये रास्ते अलग कर लें
ये ज़रूरत भी बाहमी सी है।
उधड़ी सी किसी फ़िल्म का एक सीन
उधड़ी सी किसी फ़िल्म का एक सीन थी बारिश,
इस बार मिली मुझसे तो ग़मगीन थी बारिश।
कुछ लोगों ने रंग लूट लिए शहर में इस के,
जंगल से जो निकली थी वो रंगीन थी बारिश।
रोई है किसी छत पे, अकेले ही में घुटकर,
उतरी जो लबों पर तो वो नमकीन थी बारिश।
ख़ामोशी थी और खिड़की पे इक रात रखी थी,
बस एक सिसकती हुई तस्कीन थी बारिश।
क्या बताएं कि जां गयी कैसे
क्या बताएं कि जां गयी कैसे,
फिर से दोहराएं वो घड़ी कैसे।
किसने रास्ते मे चांद रखा था
मुझको ठोकर लगी कैसे,
वक़्त पे पांव कब रखा हमने
ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे।
आंख तो भर आयी थी पानी से
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे,
हम तो अब याद भी नहीं करते
आप को हिचकी लग गई कैसे।
बीते रिश्ते तलाश करती है
बीते रिश्ते तलाश करती है,
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है।
जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है,
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है।
एक उम्मीद बार-बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है,
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर
अपने बेटे तलाश करती है।
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा
न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत,
जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है,
शायद आया था वो ख़्वाब से दबे पांव ही
और जब आया ख़्यालों को एहसास न था,
आँख का रंग तुलु होते हुए देखा जिस दिन
मैंने चूमा था मगर वक़्त को पहचाना न था,
चंद तुतलाते हुए बोलों में आहट सुनी
दूध का दांत गिरा था तो भी वहां देखा,
बोस्की बेटी मेरी ,चिकनी-सी रेशम की डली
लिपटी लिपटाई हुई रेशम के तागों में पड़ी थी,
मुझे एहसास ही नहीं था कि वहां वक़्त पड़ा है
पालना खोल के जब मैंने उतारा था उसे बिस्तर पर,
लोरी के बोलों से एक बार छुआ था उसको
बढ़ते नाखूनों में हर बार तराशा भी था,
चूड़ियाँ चढ़ती-उतरती थीं कलाई पे मुसलसल
और हाथों से उतरती कभी चढ़ती थी किताबें,
मुझको मालूम नहीं था कि वहां वक़्त लिखा है
वक़्त को आते न जाते न गुज़रते देखा
जमा होते हुए देखा मगर उसको मैंने
इस बरस बोस्की अठारह बरस की होगी।
एक पुराना मौसम लौटा
एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हों तनहाई भी,
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं,
कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी।
दो दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में,
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी,
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है,
उन की बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी।
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा,
क़ाफिला साथ और सफ़र तन्हा।
अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा,
रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा।
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा,
हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा।
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